Sunday, May 18, 2008

एक पल मेरे नाम...?

मैं ऐसी ही हूँ...छोटी सी थी, तब कुर्सी के उपर चढ़ कर पापा से कहती थी देखिए पापा मैं आपसे भी लंबी हो गई... हा हा.. पापा कहते थे ले सोनू मैं बैठ जाता हूँ तुम और लंबी हो जाओ ... पर आज भी मैं पापा से लंबी न हो सकी.मुझसे मम्मा हमेशा कहा करती थी ..पेड़ पर मत चढ़ .. साइकिल धीरे से चला..ऊंचाई से मत कूद ..थोड़ा काम करना सीख...और मैं मनमौज़ी , मस्त ,अपनी दुनिया में मगन...प्यारी - सी मम्मा ने कभी ग़ुस्सा नहीं किया बस शांत मन से कहती थी आजा सोना मेरी बात मान... मैं दौड़ कर उनसे लिपट जाती थी .खाना खाते समय भैया मेरी पसंद की सब्ज़ी चावल के अंदर छिपा देते थे और मुझे चिढ़ाते थे देख मम्मा मुझसे ज़्यादा प्यार करती है तभी तो तुझे कम और मुझे ज़्यादा सब्ज़ी देती है ...:- p मैं रोती थी और मम्मा मुझे खिला देती थी ..... और मैं बहुत खाना खाती थी:-) एक बार बुआज़ी के यहाँ सब्ज़ी पहुँचाने गई थी ,मुझे क्या पता सब्ज़ी गिर जाएगी ! गिर गई..और उस बात को लेकर आज भी भैया कहते हैं, अरे इसे कुछ मत पकडाओ सब कुछ गिरा देगी...मम्मा फिर भी ग़ुस्सा नही करती थी.



भैया पढ़ाई करते थे तो जान बुझकर ज़ोर ज़ोर से मौथोर्गन बजाती थी...ग़ुस्सा करते थे , पिटाइ भी करते थे.. मेरे पापा मेरी तबीयत को लेकर परेशान रहते थे तो फिर क्या ... पापा से कहती थी भैया तंग करते हैं..:-) भैया को डाँट पड़ती थी .मैं मुँह बनाकर दरवाजे के पीछे से झाँक -झाँक कर उन्हें चिढाती थी मुझे अच्छा लगता था..दुश्मनी दरअसल इस बात की थी कि दूध पर जमी मलाई हम दोनों को पसंद थी और मैं खा जाती थी वह ग़ुस्सा उतरे तो कैसे?इमली के बीज एक दिन पेट में चली गई ..फिर क्या भैया ने कहा देख गुड्डी अब देख तेरे पेट के अंदर पौधा पनप रहा है.. तीन - चार दिनों में तेरे सर के ऊपर इमली का पेड़ नज़र आएगा.. वाह! तू कितनी अच्छी लगेगी..मैं रोती थी फिर कहते थे देख जो कहूँगा चुप-चाप सुनेगी तो मैं रोज़ पेड़ को काटता रहूँगा और किसी से कुछ न कहूँगा ..बोल मंज़ूर? मैने हाँ कह दिया...

अगले दिन से स्कूल आते-जाते समय बस्ता पकड़ने से लेकर चाकलेट का आधा हिस्सा देना, कलम मे स्याही भरना , खेल में आउट होने के बाद भी उनका आउट न होना,जानबूझकर खाना देर से खाना ताकि वे फर्स्ट आ सके,साइकल में हवा भरना, जो उन्हे पसंद न हो वह मुझे खाना पड़ता था ... उफ़ मैं कितनी परेशान थी... मैं कितनी बेवकूफ़ थी! रोज़ भैया सुबह-सुबह बाल खींचते थे ये कहकर कि पेड़ काट रहा हूँ.. सह लेती थी .. एक दिन ज़ोर से खींच दिया तो रो पड़ी पापा ने पूछा क्यों रो रही है.. मैने सब बताया भैया को डाँट पड़ी थी ... हमारी बातचीत पूरे पन्द्रह दिनों तक बंद थी.


मैं बड़ी हो गयी.... हम फिर भी झगड़ते थे ... अब झगड़े का कारण कभी गाड़ी चलाने को लेकर, मुझसे मांगे गए पैसों के कारण, गिटार के वायर तोड़ने के कारण या फिर सच- झूठ को छिपाने को लेकर हमारे झगड़े बढ़ते गए...पर एक दिन मुझे कॉलेज छोडना था, भैया गाड़ी चला रहे थे..अचानक एक गाड़ी सामने से आकर टक्कर मार दी. कैसे भूलूँ वे दिन?!!! जिस भैया से मैं इतना लड़ती थी वही भाई अपने शरीर पर लगी चोट को अनदेखा करते हुए मेरे पास दौड़ आए और रोने लगे ..कहने लगे गुड्डी तुझे ज़्यादा चोट तो नही लगी? चोट तो लगी थी पर मेरे लिए भैया का प्यार देख कर मैं सब भूल चुकी थी..मैने घर में कुछ भी नही बताया... पर भैया ने बता दिया था कि उनकी लापरवाही की वजह से मुझे चोट लगी.. कितने सुखद क्षण थे कि भैया मेरे लिए नोट्स लिखते थे... आइस्क्रीम लाते थे..रोज़ मिकी माउस की सीरियल देखने देते थे..हम दोनो दोस्त बन गए थे.


भैया उस रोज़ चेन्नई जा रहे थे .. पहली बार ऐसा लग रहा था कि मैं अकेली हो गई ...दूर तक भागी थी .....ट्रेन जाने तक... फिर चिट्ठी लिखते थे .. मज़ा आता था..उसमे भी लिखा होता था मैं यहाँ आइस्क्रीम खा रहा हूँ तो तेरा क्या जाता है... मैं भी लिख देती थी तेरे पास तो फ़्रिज़ नही है...(~ i~) मैं तो दिन- रात खाती हूँ :-) 2 साल के बाद जब वे लौटे थे तो मैं बहुत ख़ुश हुई थी.. हम साथ - साथ समंदर किनारे जाते थे भैया को चेन्नई की हवा लग गई थी..पर मेरी वजह से किसी को जी भर देख न पाते थे कि कहीं मैं घर पर कुछ कह न दूं .. सच कहूँ मुझे तब भी मज़ा आता था .
एक दिन अचानक मैने देखा वे कुछ छिपा रहे थे . हमेशा की तरह पर्स लेकर भागी .. बाप रे बाप लड़की का फोटो! ब्लॅकमेल की अब मेरी बारी... मेरी सहेलियों को भी खिलाने - पिलाने की ज़िम्मा उठाए थे और मैं मगन कि मेरे भैया सबको आइस्क्रीम खिलाए... आज भी हँसी आती है जब वे रंगे हाथों पकड़े गये थे भाभी के साथ. दोनो एक दूसरे को खिला रहे थे पर मैने उन्हे तंग नही किया .

ये तो थी कुछ यादें जिन्हे मैंने संजोए हैं. शादी के बाद पहली बार मम्मा से मिलने घर पर गई थी तो भैया ने कहा था, गुड्डी देख मम्मा सच मूच तुझसे ज़्यादा प्यार करती थी तभी तो ... मरने से पहले तेरी राह देख रही थी… तू एक दिन पहले पहुँच नहीं सकती थी?... और मैं...... बस चुप थी ..भैया ने कहा था रो मत तू सदा हँसती हुई अच्छी लगती है... मम्मा भी यही कहा करती थी... मेरे पापा भी... तब से लेकर आज तक मैं हँस रही हूँ... सच कभी नहीं रोया... रो पडूँ तो क्या पता भैया का फोन आ जाए. कई महीनों से बात जो न हो पाई.....

राखी के दिन तो कम से कम ये अधिकार है ना कि वे कह दें .. गुड्डी तेरी राखी मिल गई! बड़ी देर तक इंतज़ार किया आख़िर सो गई थी . मन यह मानने के लिए तैय्यार न था कि क्या सच मुच ऐसा भी हो सकता है? व्यस्त जीवन से एक पल मेरे नाम ! जन्मदिन पर महज़ एक एस एम एस! शिकायत करूँ तो किस से? मम्मा तो .... नहीं मन कहता है शायद एक और आक्सिडेंट?

अचानक ज़ोर ज़ोर से रोने की आवाज़ आई ....यादें बिखर गयीं ........ट्रेन में भीड़ बहुत थी ...और एक नन्ही-सी लड़की अपने भइया के लिए रोए जा रही थी ..मैंने उसे गोद में उठा लिया ...

- सुनीता यादव

4 comments:

KK Yadav said...

Achha likhti hain. Kabhi idhar bhi dekhen aur pratikriya den-www.yaduvansh.blogspot.com

Sanjeet Tripathi said...

very emothional, very touchy

vijay kumar sappatti said...

aapne to hame emotional kar diya .... man bheeg gaya hai ise padhkar.. aap bahut accha likhti hai ...

itni acchi rachna ke liye badhai ..............

meri nayi poem padhiyenga ...
http://poemsofvijay.blogspot.com

Regards,

Vijay

अन्तर सोहिल said...

कितना सुन्दर बचपन, कितनी प्यारी यादें
लेकिन आखिर दूरियां, फासलों को पैदा कर ही देती है।

प्रणाम

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