Saturday, May 16, 2009

ये संवाद ...





जब भी विद्यालय में प्रवेश करती हूँ बचपन करवटें बदलने लगता है , मन झूम उठता है . आँखों में प्रश्न व कौतुहल लिए , होठों पर मासूम हँसी लिए विद्यार्थियों के संग कुछ पल बिताने व उनके संवाद स्थापित करने हेतु जी मचल उठता है . उनके साथ संवाद न हो तो लगता है त्रासद - अनुभवों की अंधी - सुरंग की यात्रा आरम्भ हो चूका .
सच संवेदनाओं के आदान - प्रदान के लिए विद्यालय जैसा आसमान का मिलना कितनी सुखद स्थिति है ! मानो सुबह की शीतल समीर में , पेडों की झुरमुट से या फिर खिड़की पर बैठा कबूतर भी पूछ रहा हो ...तुम आज खुश क्यों हो ? आज क्या पढाने वाली हो ? मानो कह रहा हो आत्म संतुष्टि प्राप्त करने हेतु संवाद का होना अनिवार्य सत्य है तथा समय से पहले इसे समाप्त करने की इच्छा खामोश हादसे की सूचक !

संवादों का अंत ...भावनाओं का अंत ..संभावनाओं का अंत ..संबधों का अंत . संवाद करने हेतु किसी समानधर्मी न गढ़ पाए तो हाथ में आकर रेत - सी व पानी - सा रीस जानेवाला असफल जीवन . .....
आज हम धार्मिक , सामाजिक , पारिवारिक , भौतिक मानदंडों को बदलने वाली इक्कसवीं सदी में प्रवेश कर चुके हैं . मशीनीकरण की चक्की में पीस - पीस कर मशीन बनते जा रहे मनुष्य के स्वभाव को बदलने में दूरदर्शन , संगणक व मोबाइल का योगदान भी कम नहीं .विद्यार्थियों पर इसका गहरा असर हो रहा है . वे अपने परिवारजनों के साथ समय बिताना छोड़ इन उपकरणों के वश में रहना अधिक पसंद करते हैं . यन्त्रचालित जीवन की भागदौड़ ने एक - दूसरे के साथ होनेवाले संवाद छीन लिए हैं .अगर ऐसा ही चलता रहा तो आगे चलकर किसी की भी सिसकियाँ सुनने के लिए न कान होंगे न संवेदना के दो बूंद टपकने वाले एक जोड़ी आँखें . अन्य वैज्ञानिक उपकरणों के सामान वैज्ञानिक बच्चे ...संवादहीनता जिनकी आदत बन जायेगी , जो सन्नाटे को पहचानेंगे , खामोशी को बुनेंगे या अचानक जंगल बन दहाड़ उठेंगे या फिर ज्वालामुखी बन फटेंगे . इसकी कल्पना मात्र से मन सिहर उठता है .

ऎसी स्थिति में विद्यालय जो संवादों का वाहक है , हमें एहसास दिलाता है कि हमारी वास्तविक जिम्मेदारी क्या है ..हम किस प्रकार एक महत्वपूर्ण काम कर रहे है ..किसी माता - पिता कि संतान व देश की हावी नागरिक की देखभाल कर रहे हैं , उनसे संवाद स्थापित कर रहे हैं . ये संवाद जिसके असीम आकाश होते हैं . ध्यान , धीरज , उत्साह , निष्ठा , लगन , दूसरों के सुख-दुःख समझने की क्षमता व जिन्दगी के एहसास रूपी सतरंगी लिए विद्यालय के मन को लुभाते हैं . जीवन में बेहतर संतुलन स्थापित करने हेतु सहायक बनते हैं , पंख लगाकर कल्पना शक्ति को बढाते हैं .साधारण से श्रेष्टता की और बढ़नेवाली सीडी की पहचान कराते हैं . विकास के मन्त्र फूँकनेवाले ये संवाद , आदर्श से सुचरित्र गठित करनेवाले ये संवाद , लक्ष निर्धारित कर उन्नति के सोपान चढानेवाले ये संवाद , जीवन के लिए आलोक ढूँढ़ते ये संवाद कश्ती बनकर उन्हें सुरक्षा प्रदान करते हैं .

संवादों के परे भी ये संवाद उन्हें भावनात्मक सुरक्षा प्रदान करते हैं . आत्मिक , नैतिक सामाजिक व सांस्कृतिक विकास हेतु एक शिक्षिका व विद्यार्थी का विद्यालय के साथ हुए समझौते को याद दिलाते हैं . संवादों के हर पल बदलते इस आसमान को नापना या इनमें विहार करना किसी सात्विक अनुभूति से कम नहीं है . संवादों की ये हवा , सोंधी गंध विद्यार्थी को आतंरिक संघर्षों से जुझारू होकर निकल सकने में सहायक हो यही कामना है . संवादों का यह आसमान अब मेरी थाती बन चूका है जो कि इसी विद्यालय की देन है . अनंत , असीम पंखों को आमंत्रण देनेवाले , उड़ान भरने के लिए पंखो में विश्वास भरनेवाले ये संवाद जीवन के अंत तक हर स्थिति व हर मोड़ पर साथ निभाये यही प्रार्थना है .

17 comments:

Anonymous said...

विचारों की अच्छी उडा़न....

शुभकामनाएं.......

gazalkbahane said...

आज के दिन भी शिक्षा जगत मेम ऐसी सोच बाकी है जानकर अच्छा लगा वरना तो...ट्यूशन आदि...
http://gazalkbahane.blogspot.com/ कम से कम दो गज़ल [वज्न सहित] हर सप्ताह
http:/katha-kavita.blogspot.com/ दो छंद मुक्त कविता हर सप्ताह कभी-कभी लघु-कथा या कथा का छौंक भी मिलेगा
सस्नेह
श्यामसखा‘श्याम

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निशांत मिश्र - Nishant Mishra said...

मान्यवर, हिंदी ब्लॉगिंग जगत में आपका स्वागत है. आशा है कि हिंदी में ब्लॉगिंग का आपका अनुभव रचनात्मकता से भरपूर हो.

कृपया मेरा प्रेरक कथाओं और संस्मरणों का ब्लौग देखें - http://hindizen.com

आपका, निशांत मिश्र

Unknown said...

bahut achha
badhai

BAL SAJAG said...

blog jagat men aapka swagat hai.yoon hi likahte rahiye.
wakat milw to bachcho ke blog par jarur sirkat kariyega.
http://balsajag.blogspot.com

वन्दना अवस्थी दुबे said...

swaagat hai..shubhkaamnayen.

दिल दुखता है... said...

हिन्दी ब्लॉग की दुनिया में आपका तहेदिल से स्वागत है.....

Anonymous said...

well said.achachalaga.

RAJNISH PARIHAR said...

आपने बहुत अच्छा और सटीक लिखा है जिसे हर माँ बाप को समझना चाहिए!एक शिक्षक होने के नाते मैं जनता हूँ की बच्चे किस तरह हर दिवार तोड़ कर स्कूल में मिलजुल कर रहते है..!समाज में दिखने वाला हर जातिवाद,धर्मवाद और उंच नीच का भाव इन बच्चों को नहीं पता...ये तो बस अपने टीचर में ही साड़ी दुनिया देखते है...

anurag said...

शिक्षक हमें वैसे ही याद आतें हैं जैसे हम अपने बचपन को याद करते हैं. उनके बिना आज हम जहाँ हैं वहां कतई नहीं पहुँच सकते थे. पर आज के ज़माने में शिक्षक और क्षात्र दोनों के पास इतनी तसल्ली नहीं , वक्त नहीं.

Neeraj Kumar said...

किसी माता - पिता कि संतान व देश की हावी नागरिक की देखभाल कर रहे हैं , उनसे संवाद स्थापित कर रहे हैं . ये संवाद जिसके असीम आकाश होते हैं . ध्यान , धीरज , उत्साह , निष्ठा , लगन , दूसरों के सुख-दुःख समझने की क्षमता व जिन्दगी के एहसास रूपी सतरंगी लिए विद्यालय के मन को लुभाते हैं . जीवन में बेहतर संतुलन स्थापित करने हेतु सहायक बनते हैं , पंख लगाकर कल्पना शक्ति को बढाते हैं .साधारण से श्रेष्टता की और बढ़नेवाली सीडी की पहचान कराते हैं . विकास के मन्त्र फूँकनेवाले ये संवाद , आदर्श से सुचरित्र गठित करनेवाले ये संवाद , लक्ष निर्धारित कर उन्नति के सोपान चढानेवाले ये संवाद , जीवन के लिए आलोक ढूँढ़ते ये संवाद कश्ती बनकर उन्हें सुरक्षा प्रदान करते हैं .


You write so much dutifully that I hate to believe that whether, nowadays, a teacher opines so...

Neeraj Kumar said...

why not aoption of following...

Deepak "बेदिल" said...

umda soch..shiksha ke maamle me ye achchi pahal hai

कथाकार said...

काश, सब विद्यालय संवाद की महत्‍ता समझपाते। बहुत अच्‍छा लिखा है और मुो अपने स्‍कूल की 40 बरस बाद की गयी यात्रा याद आ गयी । मैं बेहद निराश हुआ था अपने स्‍कूल जा कर। आप मेरे अनुभव kathaakar.blogspot.com पर शेयर र सकती है।
अच्‍छे लेख के लिए पुन: बधाई
सूरज

soumitra said...

Loved it.
Way to go!

hindi-nikash.blogspot.com said...

आज आपका ब्लॉग देखा.... बहुत अच्छा लगा. मेरी कामना है कि आपके शब्दों को नये अर्थ, नयी ऊंचाइयां एयर नयी ऊर्जा मिले जिससे वे जन-सरोकारों की सशक्त अभिव्यक्ति का सार्थक माध्यम बन सकें.
कभी समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर पधारें-
http://www.hindi-nikash.blogspot.com

सादर-
आनंदकृष्ण, जबलपुर
mobile : 09425800818

डॉ. दलसिंगार यादव said...

संवेदनशील और कर्तव्यनिष्ठ शिक्षक की सच्ची वावना की अभिव्यक्ति है इस आलेख में। बहुत अच्छी अभिव्यक्ति।

वर्ड वेरीफ़िकेशन हटा दें।

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