Friday, January 30, 2015

भूटान ! बहुत याद आओगे तुम ....भाग (२)

    

अगला दिन सम्मेलन का दिन 

               मन खुश था। आज सम्मान मिलने वाला है । सोचा इतने बड़े-बड़े साहित्यकार हुए जिन्हें हम  सहृदय याद करते हैं। चाहे  उन्हें सम्मान मिला हो या न मिला हो पर सम्मान देकर लिखनेवालों का हौसला बढ़ाने का जिम्मा जितनों ने भी उठाया है  उन्हें साधुवाद !अगर सम्मान न मिलता तो हौसला भी न बढ़ता। इस बात को चाहे आप माने या न माने यही सच है। बहुत कम लोग दुनिया में होते हैं जो निस्वार्थ रूप से कभी पिता बनकर कभी बड़े भाई बनकर कभी मित्र बनकर हमे लिखने की ओर प्रवृत्त कराते हैं जैसे कि कथाकार डॉ.सूरज प्रकाश जी। आज दिल से मैंने उन्हें याद किया। मेरी गलतियाँ सुधारने से लेकर डाँटने का हक़दार वही थे, हैं, आगे भी रहेंगे। हाँ जी तो मैं कह रही थी कि आखिर सम्मान ग्रहण करना किसे अच्छा नहीं लगता ? डाक बाबू कृष्ण कुमार यादव जी को देखिए  हमेशा सुर्खियों में छाए रहते हैं। ब्लॉगर हैं, साहित्यकार हैं, आई ए एस रैंक के सरकारी बाबू भी हैं।  मैंने नम्रतापूर्वक पूछा था, सर जी ! कितने अवार्ड घर पर होंगे ? उन्होने कहा था, सुनीता शायद सौ-डेढ़ सौ से ज्यादा। पुरस्कार पाने की शक्ति देवी से हम भी प्रार्थना कर बैठे , हे देवी माँ ! ऐसे भक्तों की संगत में रहें तो शायद हम भी लिखने में  और सुधर जाएँ और हमें इनसे हौसला प्राप्त हों  और जरा सोचिए देवी माँ प्रसन्न थी उस दिन !  अवार्ड लेने का सुख भी दुगुना होने ही वाला था । सुबह की कड़कती ठंड में  शुद्ध –विशुद्ध मन से,फिर से जानकारी हासिल करने सैर पर निकल पड़ी।  

       रिज़ॉर्ट परिसर में स्थित लेराब चोलिंग गोएंपा मठ की ओर गई तो वहाँ मुझे  छोटे-से  लामा  साहब मिल गए। उनके साथ , उनके बड़े भैया भी ।   मठ के लामा की सहायता से  मठ में स्थित बुद्ध का दर्शन प्राप्त हुआ।  उनसे हुई बातचीत के धार पर यह पता चला कि बौद्ध –विचार यहाँ के जीवन का अहम हिस्सा है। तांत्रिक रहस्यमयता से लिपटे इस शांत शहर में लोग धीमे बोलते हैं। कहीं ज़ोर से बोलेंगे तो बुद्ध के ध्यान में खलल न पड़ जाए क्यों कि उनका विश्वास है कि बुद्ध अभी भी किसी पहाड़ी पर ध्यान मग्न हैं...
  आस-पास देखा सुबह-सुबह पानी की धार बर्फ की धार बन चुकी थी। हाथ-पर मेरे सिकुड़े जा रहे थे , भाग आई वापस रिज़ॉर्ट में तैयार होने। सुबह प्रभात जी से मिली,  मुख्य अतिथि के बारे में चर्चा हुई, प्रभात जी और के.के॰ यादव जी ने संचालन का कार्य मुझ पर सौंप कर निश्चिंत हो गए थे। कम समय में जितना हो सकता था उतना किया । तैयार होने जा ही रही थी कि प्रभात जी का बुलावा आ गया कि अतिथि पधार चुके हैं I  

मुख्य अतिथि के साथ हुई बातचीत के कुछ अंश



जल्दबाजी में तैयार हो कर उनसे जा मिली। चाय के टेबल पर उनसे बातचीत हुई।  आदरणीय अतिथि श्री फूप शृंग जो कि  भूटान चेम्बर  ऑफ कामर्स अँड इंडस्ट्री के महा सचिव हैं; बातचीत के दौरान उन्होने परिकल्पनाके उद्देश्य को जाना, समझा, साहित्य और संस्कृति रक्षण की ओर उठाए गए इस कदम को सराहा। मीडिया में अपने दीर्घ 26 साल का अनुभव सुनाया। भूटान में पहला प्राइवेट टी वी चैनल को लाइसेन्स इन्ही की बदौलत मिली थी । 
 उनसे हुई बातचीत के दौरान वहाँ कि आर्थिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालते हुए कहने लगे कि भूटान एक कृषि प्रधान देश है। कृषि और पशु पालन यहाँ के किसानों की मुख्य जीविका है। लोगों की आय चावल, गेहूं, मक्का, सेब, संतरे आदि की बिक्री पर निर्भर है। यहाँ की आर्थिक ढांचा यहाँ पर निर्मित पन-बिजली  के भारत को विक्रय पर निर्भर है। कृषि , वन क्षेत्र और पन- बिजली से 70% आय सरकार की  होती है। कुटीर उद्योग है, औद्योगिक उत्पाद न के बराबर है। पर्यटन इस देश का सबसे बड़ा स्रोत है फिर भी एक सीमित  संख्या विशेष पर्यटकों को ही घूमने के लिए  इजाजत दी जाती है। अतीत की धरोहर से अपनी संस्कृति खो न जाए तथा  आर्थिक प्रगति के दौड़ में मानवीयता कहीं खो न जाए, इस बात का खासा खयाल रखा जाता है।

 उन्होने यह भी कहा कि G N H ( Gross  National Happiness ) अर्थात सकल राष्ट्रीय खुशी की अवधारणा का नीव भूटान के चौथे राजा जिग्मे सिगमे वांचुक ने  रखा था जिसमें आर्थिक निर्भरता, पर्यावरण, संस्कृति और सभ्यता के संरक्षण जैसी चिंताएँ व्यक्त की गई थी । तभी तो आज भी मकान की डिजाइन पारंपरिक हैं, सरकारी ऑफिस में भूटानी परिधान अनिवार्य  है। अतः वित्तीय समस्या के बावजूद संतुष्टि को सराखों पर बिठाने की बात कही जाती है।

चाय-नाश्ते के बाद  वे सम्मेलन के आतिथ्य हेतु कॉन्फ्रेंस हाल की ओर चल दिए। संचालन का काम मुझ पर सौंपा गया था इसलिए मैं थोड़ी देर पहले ही विदा ले चुकी थी। 

परिकल्पना का चौथा अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन,भूटान


दीप प्रज्ज्वलन पश्चयात कुसुम जी के सुरीले कंठ से माँ सरस्वती की वंदना तथा विष्णु कुमार शर्मा जी द्वारा गणेश वंदना के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। मुख्य अतिथि के रूप  में भूटान चंबर ऑफ कॉमर्स अँड इंडस्ट्री के महासचिव श्री फूपस शृंग की उपस्थिति तथा विशेष अतिथि के रूप में  भूटान चंबर ऑफ कॉमर्स अँड इंडस्ट्री के उप महासचिव श्री चंद्र क्षेत्री, सार्क समिति के महिला विंग तथा इंटरनेशनल स्कूल ऑफ भूटान  की अध्यक्ष श्रीमती थिंले लम्हा , असम विश्व विद्यालय सिल्चर के भाषा विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ. नित्यानंद  पांडेय , इलाहाबाद परिक्षेत्र के डाक निदेशक श्री कृष्ण कुमार यादव,हिन्दी के वरिष्ठ व्यंगकार गिरीश पंकज उपस्थित थे।




इस अवसर पर रायपुर छतीसगढ़ की अल्पना देशपांडे और अदिति देशपांडे की कलाकृतियों की प्रदर्शनी के लोकार्पण के साथ-साथ परिकल्पना कोश वेब साइट का भी लोकार्पण हुआ। पाँच पुस्तकों क्रमश: श्रीमती सम्पत देवी मुरारका की यात्रा वृत्तात-भाग3, श्रीमती कुसुम वर्मा की हृदय कमल’, श्री सूर्य प्रसाद शर्मा निशिहर की संघर्षों का खेल’, श्री विष्णु कुमार शर्मा की दोहावली’, डॉ.अशोक गुलशन की क्या कहूँ किससे कहूँ तथा परिकल्पना समय पत्रिका के जनवरी अंक का विमोचन हुआ।

  
                                                        
                         



             सम्मलेन के आयोजक श्री  रविन्द्र प्रभात जी ने  सम्मान ग्रहण करवाने हेतु सभी को  मंच पर आमंत्रित किया और उनके नैन तृप्त हुए I मुख्य अतिथि के हाथों सर्वोच्च परिकल्पना सार्क शिखर सम्मान से नवाजे गए तीन हस्ती रहे  यू.पी के श्री कृष्ण कुमार यादव, हैदराबाद की श्रीमती  सम्पत देवी मुरारका एवं रायपुर  छतीसगढ़  के श्री ललित शर्मा।  सभीको पच्चीस हजार की धनराशि, स्मृति चिह्न, सम्मान-पत्र, अंग-वस्त्र प्रदान किए गए। परिकल्पना सार्क सम्मान’, 5000 धनराशि, स्मृति चिह्न , सम्मान-पत्र, अंग-वस्त्र से भूषित हुई महाराष्ट्र, औरंगाबाद की श्रीमती सुनीता प्रेम यादव (यानि मुझको J) को दिया गया। इनके अलावा लगभग तीस ब्लॉगरर्स को साहित्य  सम्मान तथा अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।


      इस अवसर पर लोक गायिका कुसुम वर्मा के लोकगीतों की प्रस्तुति हुई।  मधुर आवाज की  धनी  कुसुम ने सभी पर जैसे जादू बिखेर  दी थी । तत्पश्च्यात ब्लॉगर श्री ललित शर्मा जी  तीसरी से पाँचवीं शताब्दी के समय के दक्षिण कोशल की प्राचीन राजधानी सिरपुर के विषय में विस्तार से जानकारी दी जहाँ एक समय शैव, शाक्त, वैष्णव, बौद्ध,जैन, गापत्य आदि धर्मो को समान आदर एवं स्थान प्राप्त था।  यह नगर दक्षिण कोशल तक बौद्ध धर्म की बज्रयान  शाखा के विस्तार का साक्षी है और मुख्य बात यह है कि भूटान  में भी इसी शाखा के 75% अनुयायी  हैं। इससे साबित होता है कि दक्षिण कोशल से भूटान के प्राचीन काल में मैत्रयी संबंध रहे हैं ।  वहाँ 100 बौद्ध विहार थे, 10,000 भिक्षु अध्ययनरत  थे। प्रसिद्ध अलकेमिस्ट नागार्जुन ने जीवन के कुछ महत्त्वपूर्ण वर्ष यहाँ बिताए थे।  महानदी के किनारे पर 18 डिग्री पे बसा हुआ दक्षिणापथ मार्ग का  यह एक महत्त्वपूर्ण महानगर एवं व्यावसायिक केंद्र था । इसका नगर विन्यास अतुलनीय है। उन्होने यह भी कहा कि शरभपुरियों ने इसे बसाया था और जब इसका उत्खनन हुआ था तब एक विशाल मार्केट कॉम्प्लेक्स प्राप्त हुआ था। क्या इंजीनियरिंग होगी ? धन्यवाद ललित जी ! मित्र होने पर गर्व महसूस हुआ। 

अतिथि-भाषण के अंतर्गत भूटान चंबर ऑफ कॉमर्स अँड इंडस्ट्री के महासचिव मुख्य अतिथि श्री फूप शृंग ने कहा कि विभिन्न देशों के साहित्य, संस्कृति, एवं परिवेश को ब्लॉगिंग एवं सोशल मीडिया के माध्यम से महसूस ही नहीं बल्कि उसका विस्तार भी संभव हो चुका है। सार्क समिति  के महिला विंग की अध्यक्ष श्रीमती थिंले ल्हाम ने ब्लॉगिंग की दुनिया में कदम रखती नारी को नारी सशक्तिकरण की दिशा में बढ़ता सफल कदम माना है।
इलाहाबाद परिक्षेत्र के डाक निदेशक श्री कृष्ण कुमार यादव जी ने ब्लॉगिंग को दूर-दराज के इलाकों में ले जाने की बात कही ताकि
विभिन्न प्लैटफ़ार्म पर काम करने वाले लोगों के विचारों का एकीकरण हो। असम विश्व विद्यालय सिल्चर के भाषा विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ. नित्यानंद  पांडेय जी ने हिन्दी को समृद्ध करने का सशक्त माध्यम ब्लॉगिंग को बताया जिससे कि विश्व-भर के लोग आज हिन्दी से जुड़ रहे हैं। आभार-प्रदर्शन के साथ-साथ हिन्दी के वरिष्ठ व्यंगकार गिरीश पंकज ने हिन्दी ब्लॉगिंग के विभिन्न पहलुओं की चर्चा करते हुए इसे पुस्तकाकार रूप में लिपिबद्ध करने की बात कही। 

कुछ झलकियाँ ......

  

  
  उसके बाद खाना , गाना और घूमना .....


     
बटर रोटी, गोभी मसाला, पनीर का कोफ्ता, ग्रीन सलाद, पाइनापल राइता, मसाला पापड़, आचार, मिठाई ....ये सब पेट तक पहुँचकर उसे संतुष्टि दिला रहे थे। पुलाव खाया और फिर कमरे की ओर प्रस्थान किया, जाते-जाते नजर पड़ी घड़ी पर बापरे! मार्केट जाने का समय हो गया था। भागी – भागी आई। सब बस में बैठ चुके थे। उस दिन की  बात ही कुछ और थी। हमें घुमाने ले चला था गाइड बनकर छोटू भूटानी नाम था शृंग  धेंधूप 
 

                   छोटू भूटानी ने बहुत ही रोचक ढंग से भूटान के राजा के बारे में बताया। विश्वंभर जी ने पूछा था, राजा का क्या काम करते हैं ? जवाब में उसने कहा था, अपने बच्चों की देख-भाल करते हैं। और राजा का नाम है जिग्मे खेसर  नामग्याल वांगचुक जो पाँचवें राजा हैं। वे यू के स्थित ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ें हैं। शिक्षा पर खूब ज़ोर देते हैं। जो लड़के मेरिट में आते हैं और अगर वहाँ उस विषय की पढ़ाई नहीं हो सकती तो उसे बाहर भेजा जाता है जिसका सारा खर्चा सरकार वहन करती है।
         


       राजसी सत्ता के अलावा लोकतान्त्रिक व्यवस्था भी है। दो राजनीतिक पार्टियां हैं: पी. डी.पी. और डी. बी. टी. ।  शेरिंग तोबके जी प्रधान मंत्री हैं। भूटान के झंडे पर ड्रैगन का चित्र होता है।
शादी के बारे में शुभदा जी ने बड़े प्यार से पूछा था,छोटू, तेरी शादी हो गई? उसने हँस कर कहा नहीं। फिर से शुभदा जी ने पूछा था  भारत की लड़की से शादी करोगे?  छोटू कहने लगा था ना  भारत में शादी में खर्चा बहुत होता है लेकिन भूटान में नहीं।  बल्कि  खर्चा तो तब ज्यादा होता है जब कोई इंसान मर जाता है । तब उसकी आत्मा की मुक्ति हेतु 49 दिनों तक पूजा -अर्चना किया जाता है। खान-पान के बारे में पूछा गया तो कहने लगा था मिर्च और पनीर से बना  इमा दात्सी स्थानीय स्वाद है जिसे चखोगे तो भूल नहीं पाओगे।पहनावे  के बारे में पूछा तो कहा कि कपड़े कपास, सूती,एवं रेशम की धागों से बनाया जाता है । लड़कियाँ या माहिलाएँ जो ऊपर पहनती हैं उसे टैगो कहते हैं और जो नीचे पहनती हैं उसे कीरा कहते हैं। और पुरुष जिसे पहनते हैं उसे गो कहा जाता है।

 हल्लागुल्ला करते-करते हम मार्केट पहुँच गए थे। सभी नाराज भी होते होंगे फिर भी जिस रफ्तार से मैं चलना चाहती थी मेरा साथ देनेवाले  कोई नहीं थे  सो मैं अकेली चल पड़ी थी। और बड़ी देर तक मोल-भाव करने के बाद मैंने  कुछ लेदर जाकेट्स खरीदे थे। मन खुश था। 

   



 अजनबियों के बीच में मैं चल पड़ी थी। किसी को किसी से कोई लेना- देना नहीं।ठंडी हवा गालों को छू जाती थी तो लगता था हाँ ये कोई अपनी-सी है वरना आज तक  बाहरी व्यक्तित्व से हर कोई परिचित था आंतरिक से हर कोई अपरिचित । जिस्म के अंदर की  औरत जात को पहचान सकने वाली  दो आँखों की तलाश में तथा मन और तमाम तृष्णा के लिए हर कोई अजनबी ही मिला था पर इस हवा ने तो तन-मन को झंकृत कर दिया। इजाजत लेती हुई तेजी से बस की ओर चल पड़ी। काफी लोग आ चुके थे, एक-दो का आना बाकी था। हम वापस रिज़ॉर्ट की ओर चले। 

रात को कुसुम जी राम जी और कृष्ण जी के गीत गाए,
रघु बर संग जाब हम  न अबध माँ रहिबे
जो रघुबर रथ चढ़ी जाइहैं /पैदल चली जाब हम न अबध माँ रहिबे

जो रघुबर पात बिछैहैं/ भुईनये सोई जाब हम न अबध माँ रहिबे ॥


विष्णु कुमार शर्मा जी के मुक्तक


जिंदगी की गाड़ी कब जाने कहाँ रुक जाए इसलिए शुभकारी शीघ्रता से करिए
मरने को मरते हैं पापी  पुजारी सभी कर्मों का फल मिलता है ध्यान धरिए।  
जग को बनाने वाला न्यायी है नियंता किन्तु पलता  दिखा नहीं अनुभव रिए
हारिए न हिम्मत अभी सारिए न लचन जी  आशा के प्रदीप को जलाए चले चलिए ॥


ये गीत-मुक्तक सुन-सुन कर धन्य हुए और फिर सु निद्रा में शयन हेतु कमरे की ओर चल पड़े। 


पर्यटन दिन एवं पारो की ओर  प्रस्थान   (क्रमश: .....)



  

5 comments:

Unknown said...

Very Explicit , I felt as if i was there. God bless you

अन्तर सोहिल said...

खूबसूरत वर्णन
अच्छा लग रहा है पढते हुये

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

बहुत बढिया, आपने "पक्के चिट्ठे" में बहुत कुछ समेट लिया। इस कार्यक्रम में आपका भी महायोगदान रहा है। मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ।

विवेक रस्तोगी said...

बढ़िया वर्णन चल रहा है

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

:-D

विशेष सूचना : यहाँ प्रकाशित आलेख/कविता/कहानी एवं टिप्पणियाँ बिना लेख़क की पूर्व अनुमति के कहीं भी प्रकाशित करना पूर्णतया वर्जित है।
© 2008
सर्वाधिकार सुरक्षित! सम्पर्क करें- sunitay4u@gmail.com