Monday, March 17, 2008

एक बार फ़िर लहरों के द्वार .....




जनवरी महीने की बात है .विद्यालय से लौटने के बाद मैं अपने पति के साथ बात कर ही रही थी कि अचानक डाकिया प्रकट हुआ परिचित भूरे रंग का लिफाफा लिए ...मन उत्सुक था ...क्या यही वह पत्र तो नहीं ....? आनंद सागर में डुबकियां लगाते प्रेमी से कह दिया इस बार गोवा जाना है .... आदरणीय कुलदीप कौर (सहायक निर्देशक ,केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय ,मानव संसाधन विकास मंत्रालय,भारत सरकार, नई दिल्ली ) मैडम के लिए दिल से दुआएं निकली जा रही थीं .... . २७ जनवरी से ५ फरवरी तक गोवा में शिविर ! ....जैसे दिल की पुकार दिल्ली ने सुन ली . वैसे तो केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय भारतीय संस्कृति को , सभ्यता को जिंदा- ताजा रखने के लिए अहिन्दी राज्यों से हिन्दी नव लेखकों को बुलाकर भिन्न -भिन्न राज्यों व शहरों हिन्दी शिविर का आयोजन करती है जाहिर है ऐसे शिविरों में विभिन्न राज्यों से आए हुए नव लेखकों से मुलाक़ात होगी..सोचकर ही मन प्रसन्न था .इससे अधिक व्यग्रता उस स्थान को लेकर थी जहाँ इस शिविर का आयोजन गोवा विश्व विद्यालय एवं गोमांतक राष्ट्र भाषा विद्यापीठ के संयुक्त तत्वावधान में होने वाला था.
जिन्दगी के खूबसूरत पलों को संजोए रखने की आकांक्षा रखते हुए हम २७ जनवरी को दोपहर तीन बजे बस स्टैंड पहुंचे .बस निकलने वाली थी. अन्दर जाकर सीट पर बैठ गए और चैन की साँस ली.सामान को सीट के नीचे सुला दिया .सामान जाग उठा पिछवाडे सज्जन के मृदु पदाघात से ,चिहुँक कर किसी आतंक से भयभीत बेजुबान बच्चे की भाँती सिमट -सिमट कर मुझे यूं जोर से पकड़ लिया ...हाँ मैंने उसे चुपके से गोदी में सुला दिया ....
यात्रा शुरू हो चुकी थी ...रास्ते में गुजरते समय महसूस हुआ आकाशी वर्षा पर आश्रित गेहूं की बालियाँ लाचार दिख रहे थे...विवश,उदास ..कुछ चेहरे भी दिखे जिनमें समय की तरह भाव बदलने की प्यास थी ...रात को एक ढाबे के पास गाड़ी रुकी .हमने खाना खाया और फ़िर चल पड़े .दिनभर की भाग-दौड़ और थकान रात की आसमान को देखने से इनकार करती हुई मीठी नींद लेने का आग्रह कर रहा थी पर नटखट आँखें आसमान के गलिओं में चाँद को देख रहा थीं जो तारों को लुभाने के चक्कर में अपना रूप बदल कर छेड़े जा रहा था . नजाने कब आँख लगी कब सुबह हुई पता नहीं चला ...आँख खुलते ही लगा मानो जिन्दगी मन मस्दिष्क के कुहासे को चीर कर जाग उठी ...पिछले कई सालों से हरियाली को तरसती आँखें, उन्हें यूं अपने सम्मुख गाती, हिलोरें लेती देख चौंधिया गई थीं .ऊँचे -घने वृक्ष पहाड़ के कतारों की हरी धारी बनने में मगन थे ..प्रतीत होता था वे धरती की और झुक जाते हैं तो कभी आकाश की और खुलकर फ़िर झुक कर हँसते -हँसते अपनी ही सुन्दरता पर मुग्ध हो रहे हों. .

हम पणजी बस स्टैंड पहुँच चुके थे ..सुबह आठ बजे गोवा की धरती -स्पर्श की अनुभूति का वह कुतूहल पल को कैसे भूल जाऊं ?छोटा-सा मगर साफ सुथरा शहर ,तीनों ओर सागर से घिरा तटीय सुंदर शहर .भारतीय ही नहीं विदेशी पर्यटकों का प्रमुख आकर्षण शहर गोवा....ओह कितनी बार नाम ले रही हूँ .. हम टैक्सी लिए गेस्ट हाऊस के लिए रवाना हो चुके थे कि यूँ मेरी नजर उन नारियल वृक्षों की कुंज में अटकी थी जो २० से ६० फीट तक ऊँचे - लंबे अनुशासित छात्रों की तरह पंक्ति बद्ध खड़े हो कर मन -मौजी हवा के साथ हिल- हिल कर खुशी जाहिर कर रहे हों ...उनमे ऎसी शक्ति थी कि कोई भी बिना सम्मोहित हुए रह ही नहीं सकता था .समस्त मानवता को सीखा रहे थे सब कुछ देकर भी धनी कैसे बन सकते हैं ...नहीं समझे न .. इसके फल और पानी से भूख -प्यास मिटती है, इसके पत्ते गरमी-बरसात से मुक्ति दिलाते हैं ..तना घर के लिए स्तम्भ का करता है ,इंधन ,रस्सी ,झाडू क्या नहीं देता है यह ख़ुद पूजन के लायक है फ़िर भी पूजा के लिए श्रीफल का दान कर देता है . लगता है मैं फ़िर खो गई पेडों के कुंज में कभी किसी गेंद की तरह तो कभी गोपिका की तरह ... कि अचानक उन पेड़ों के बीच से नीला -नीला पानी झांक-झांक कर मानो कह रहा था ..आ जाओ ...मेरी गोदी में ....मन को तृप्त कर लो ....दिल को हल्का कर लो ..मुझे और नमकीन बना दो ...
हम थोड़ी देर बाद गेस्ट हॉउस पहुंचे .सामान रखा ,गोवा विश्व विद्यालय के हिन्दी विभाग की ओर चल पड़े ..डॉक्टर रोहिताश्व जी से मिले ...हाँ नजरें घूम रही थीं ...वे काफ़ी व्यस्त थे ..गोवा में आमंत्रित नव लेखकों को ठहराने की जिम्मेदारी जो थी उन पर ...खैर मन प्रफ्फुल्लित हो गया जब समय का फायदा उठाने का मौका मिला ...हुआ यूं कि मुझे एम्. ए द्वितीय वर्ष की विद्यार्थियों से बातचीत करने व कविता के भाव पक्ष पर चर्चा करने का सुअवसर मिला ...खुशी हुई जब बातों-बातों में मैंने हिंद-युग्म के बारे में जानकरी दी . . लग-भग डेढ़ घंटे के बाद हम कैंटीन की ओर भागे .पेट रो रहा था ...चूहे कूद रहे थे ...:-) खाना खाकर वापस लौटे और विश्राम किया .शाम को कौर मैडम को देखा ..दिल को तसल्ली मिल गई .तय हुआ निकट स्थित दोनापौल तट घूम आएं ....बस से उतर कर हम पैदल जा रहे थे , हरी राम जी ,पंडित जी पीछे-पीछे आ रहे थे .मैं ,प्रेमी ,अंकित .विजय और शैला मैडम के साथ -साथ चल रहे थे .अंकित हमारे साथ काफी घुल-मिल गया था....मैडम दोनों प्रेमियों की कहानी सुना रही थी ..ऐसा लगा अचानक पैर धँस रहे हैं ....नमकीन हवा बही जा रही है ..आ गया था सागर तट अब उजास और बढ़ गई थी . आह! अथाह जल राशि !मगर आज इतना शांत क्यों ? समुद्र का शांत रूप देख कर प्रतीत हुआ शायद आज ये भी थकान मिटाना चाहता है ...पहली नजर में उसका चंचल न होना अच्छा नहीं लगा पर मन को मैंने समझाया दोनों प्रेमियों की मौत को शायद वह भूल नहीं पाया है ...वही तो चिर साक्षी था ...उसकी सहृदयता पर गर्व हुआ ...शाम हो गयी थी .. लौटते - लौटते टी शर्ट , काजू खरीदा और वापस आ गए .पहला दिन था वहाँ के जीवन क्रम से अपरिचित हम वापस लौट आए .....पूजा मेरी गुडिया की याद बहुत आती थी क्यों कि उसे पानी में खेलना बहुत पसंद है .






मन संतुष्ट नहीं था ...अगले दिन शिविर का उद्घाटन हो गया था..अतिथिगणों के भाषण में विद्यार्थियों के लिए प्रेरणाप्रद शब्द थे, वे एहसास के मौन को शब्दों से खंडित करने की तथा संवेदना को संजो कर संवेदनशील तक पहुंचाने की सलाह दे रहे थे ....समारोह संपन्न हुआ .दोपहर भोजन में सभी एकत्रित हुए ..एक दूसरे को जाना .तुरंत तय भी किया कि शाम को मीरामार तट पर जायेंगे .....उस दिन न ही समुद्र थका हुआ था और न ही धुंधले मेघ थे बस सूरज का मुखड़ा धीरे -धीरे धरती के मंच की ओर सरकता जा रहा था .उस अग्नि के गोलक के पीछे था अन्धकार का परदा ...लालिमा का क्षणांश पलकों में झिलमिलाता डुबकी लगा दिया....इसका एहसास तब हुआ जब एक मूंगफली का दाना अचानक उदर में चला गया .हमने उस दृश्य का उपभोग किया ,पास में स्थित एक मन्दिर में गए ,मेले में गए कुछ चीजें खरीद कर बस पकड़े और चल दिए ....रात को भोजन पश्चात हम सभी सम्मिलित हुए और अपनी प्रतिभा की झलक दिखाने का अवसर सभी को मिला था ... सभी बहुत आनंदित हुए अंततः सुख निद्रा में शयन हेतु थके पाँव बिस्तर को छूने की व्यग्रता लिए आगे बढ़ गए ...





रोज हम शिविर में उपस्थित होते थे और अपनी -अपनी कवितायें , कहानी,अनुवाद,आदि प्रस्तुत करते थे और मार्ग दर्शक भी हमें और अच्छा लिखने की प्रेरणा देते थे .वास्तव में हमें प्रो॰ डॉ॰ जगमल सिंह, डॉ॰ शोभनाथ यादव, डॉ॰ दिनेश कुश्वाहा एवं डॉ॰ रोहिताश्व जैसे प्रवर सुविज्ञों के बीच समय बिताने का अवसर प्राप्त हुआ।इन सभी ने संबंधित विषयों की (कविता, कहानी, नाटक, अनुवाद, पत्रकारिता आदि) सूक्ष्म पहलुओं को उजागर करते हुए अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत किया।इन विचारों का विनिमय भावनात्मक व्यक्तिकरण को आँच देती आतंरिक वृत्तिओं को सब और से मोड़ कर एकाग्र होने की ओर प्रवृत्त कर रहा था। गोमन्तक राष्ट्र भाषा विद्यापीठ के श्री मोहन सुर्लेकर जी , विठल पारकर जी,सोनिया सिरसाठ जी,ज्योति कुलकर्णी जी की उपस्थिति , सहयोग,एवं साहित्य -सृजन में भागीदारी हमारे लिए सौभाग्य की बात थी .




हर रोज सत्र ख़त्म होने के बाद हम कहीं न कहीं निकल पड़ते थे ...मुझे हमेशा सागर तट अच्छे लगते थे ...मैंने कहा आज एक और तट घूम आते हैं पर अन्य साथी चाहते थे कि बाजार घुमा जाय...पणजी ...गोवा में बहती मांडवी नदी के तट पर बसा यह राजधानी (पणजी ) ,एक अविस्मरणीय शहर . आदिल शाह के समय का बंदरगाह,पुर्तगाली समय का सामरिक अवतरण- पटारा .कभी यह समृद्ध व्यापारिक केन्द्र के रूप में प्रसिद्ध हुआ करता था , चीन ,अरबी ,यवन लोगों के साथ व्यापार के लिए बंदरगाह भी था ...वहाँ का मार्केट एक दम सजा -संवरा ,हर प्रकार के सामान से भरपूर , सीपी से बने उत्तम हस्तकला के प्रतीक ,ख़ास तरह की टोपियाँ ,गोवा के नारियल पेडों की तस्वीर लिए भिन्न-भिन्न टी शर्ट , रंग-बिरंगे कपड़े आवश्यक और शौक की चीजों की विविधता लिए ग्राहकों के इन्तजार में मग्न था.... हरी सब्जिओं की दुकानें कतार में दीख रही थीं ...हर पाँचवीं-छठी दूकान के बाद बार दिखाई पड़ता था पता चला आबादी का बड़ा भाग फेनी नाम का शराब पीता है ..खैर जब पता चला काजू यहाँ सस्ते मिलते हैं तो हमने भी काजू खरीदा ,कपड़े खरीदे ...सात बजने वाले थे ...हमारे पैर बस की ओर भागने लगे थे.



सब ने कुछ न कुछ सामान ख़रीदा ..फ़िर गेस्ट हॉउस लौटे ...रात को फ़िर महफ़िल सजी सब ने गाना गया ,नसीम सर और कौर मैडम के गीत और गजल ,दिनेश जी के सायराना अंदाज और शोभनाथ जी की कवितायें ...वाह.! ...क्या कहना ..
अगले दिन हम कोलोंगुड तट की ओर चल पड़े ... अद्भुत दृश्य था ,पानी ही पानी ...लग रहा था मानो एक साथ विद्यार्थी हाथों में हाथ लिए भागे आ रहे हैं ...और कुछ कह दो तो भागे जा रहे हैं , या फ़िर वे लहरें गाँव के छोटे-छोटे बच्चों की तरह हमें देख कर आतिथ्य हेतु हमें देखने आते और उल्टे पाँव पानी लेने चले जाते .. उनसे निकली झाग मानो खिलखिलाती ललनाओं की दंत पंक्तियाँ हों..हमारे खुशी में वे भी शामिल थे ..सागर ने हमे वाकई भिगोया ..शरीर को भी और मन को भी ..उससे दूर होने का दुःख हो रहा था तभी हवा ने भीगे बदन को छु-छुकर शिकायत कर दी ..अब तक लहरों में खोई थी ! अब मेरी लहरों से बचो तो मैं जानूँ ...हवा का मेरे साथ यूं जबरदस्ती मुझे अच्छा नहीं लगा ..मैं काँप रही थी . प्रेमी दूर थे .उनका यूं मुझसे दूर होना भी अच्छा नहीं लग रहा था .मानो लहरों ने जी भर भिगोना भी सिखाया और अब उससे बिछड़ने की सजा भी दे दिया . इस तरह हम रोज तट पर घूम आते .निरधी की व्यथा-कथा को कभी महसूस करते तो कभी उसकी उन्मुक्तता का एहसास करते ... किसी प्रकार भारी मन से वापस कैम्पस पहुँचे, खा-पीकर सो गए .


एक और बात कहूँ ?..हमारे रूम की खिड़की से गाँव और सागर तट दिखता था ,मन पिछले दिनों से मचल रहा था ..अगले दिन सुबह पाँव चल पड़े , दरवाजा खुल गया .सुबह का समय था, ऊंचे पेड़ों से धूप का छन -छन गिरना व साथियों का उत्साह उफान पर होना ,वाह क्या सुबह थी ! सुहावना मौसम था। आधे दूर तक पक्की सड़क व बाद में तट तक लगी ऊबड़-खाबड़ ,टेढी-मेढ़ी पगडंडियों पर पाँव-पाँव चलने का सुख ,हर क्षण नया दृश्य,नया मोड़, ऐसे लग रहा था हर समय प्रकृति हमे कुछ न कुछ देने तत्पर होती रहती है .... कुदरत महरबान तो इंसान कीकड़ी पहलवान, रास्ते की ढलान को तेजी से पार करते हुए आख़िर पहुँच गए ..मछुआरों की बस्ती थी , सामने छोटी - छोटी मछलियाँ सूख रहीं थीं ,मछुआरे जाल से मछलियों को अलग कर रहे थे , सुबह का शांत वातावरण अतः छोटे -बड़े नाव भी मौन थे .मैं सीपी ,शंख ,कौडी,आदि जमा कर रही थी .सूरज उग रहा था ...उसकी किरण प्रभा को पीकर सागर तृप्त हो रहा था .पुलकित वृक्षों पर बैठे पक्षी संगीत की मीठी तान से चहुँ ओर नजर दौडा कर हमें भोर का संदेश दे रहे हों ,कलियाँ खुशबू बिखेर रहे थे ...चारों ओर छाई हरियाली,उमड़ते सागर ,लंबे नारियल वृक्ष के कुञ्ज ,केसरिया आसमान देख उस निर्माता की अनूठी कलाकृति के लिए आत्मा झुक कर मिलन की आस लिए तड़प रही थी ...स्तुत्य के लिए हाथ जुड़ गए ....हे अपरिचित कुञ्ज क्षण भर के लिए तुम मुझे विश्राम करने दोगे ? शीतल हवा से मन भीग रहा था ..हम सभी.... मैं ,प्रेमी,नसीम सर ,हरी राम जी , मेगी हम सभी को वहाँ से लौट ने का मन नहीं कर रहा था ................. मन ही नहीं कर रहा था कि कहीं जाएँ, बस एकटक बैठे प्रकृति की सुन्दरता को निहारते रहें। प्रकृति के इस अनूठे रूप के सामने सारी अनुभूतियाँ गौण थीं ...





अगले दिन के सत्र में जैसे ही डॉ . रोहिताश्व जी ने बताया कि हम दुपहर तीन बजे तक अगर पणजी पहुँच जाते हैं तो कार्निवाल देख सकते हैं ...फ़िर क्या बात थी ..डॉ. रोहिताश्व्जी ने हम सभी को कार्निवल के बारे में जानकारी देने हेतु दादू मान्द्रेकर जी को बुलाया था .उन्होंने हमें इस त्यौहार के बारे में जानकारी दी .हम सत्र ख़त्म होने का इन्तजार कर रहे थे .ख़त्म होते ही खा-पीकर पंजी की ओर निकल पड़े .समय से पहले पहुँच भी गए ...वहाँ का नजारा देखा तो रास्ते के दोनों तरफ़ भारतीय एवं विदेशी पर्यटकों का ताँता बंधा था .सभी रंग-बिरंगे माहौल का लुत्फ़ उठा रहे थे .इंतजार था किंग मोमों के किरदार में गलेरियो डीसिल्वा का जो सोने की मुकुट पहनकर आनेवाले थे और खाओ,पीओ,और मजा करो संदेश देने वाले थे .कहा जाता है किंग मेमों का यह किरदार इस कार्निवल के दौरान लोगों को जमकर खाने-पीने और नाचने-गाने का हुक्म देता है सुना था पुर्तगाली हुकूमत के दौरान यह कार्निवल बहुत छोटे स्तर पर हुआ करता था और तो और 1961 में गोवा की आजादी के बाद यह कार्निवल बंद भी हो गया था . गोवा के पर्यटन विभाग में काम कर रहे पार्सिवल नोरोन्हा ने 1967 में अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर इसकी फिर से शुरूआत की। हम सभी उत्सुक थे तभी प्रेमी,अंकित,मैं ,रोबिन हम चारों फोटो खींचने में व्यस्त थे.वे तीनों तो गायब हो गए पर मैं, मेगी ,कौर मैडम ,कल्याणी जी,हम सभी रास्ते के एक ओर बैठ गए .तभी एक छुटकु मुँह में अंगूठा लिए नाच रहा था ..बड़ा ही प्यारा था .सारे विदेशी एक तरफ़ और ये महाराज एक तरफ़. सच झट उसे गोद में उठा लिया .तभी किसी ने कहा हम खड़े हो जाते हैं वरना किंग मोमो गुजर जाएगा और हम कुछ भी देख न पायेंगे ..जल्द जगह बदल डाली हमने .देखते ही देखते वह पल आ ही गया .दो सुंदरियों के साथ किंग मोमो रथ पर विराजमान हुए ...सभी को खाने,पीने व मजा लुटने का संदेश दिया और तो और उनके पीछे लगभग बीस पारंपरिक कलाओं से जुड़े चित्र रथ, विदूषक ,संगीत पर थिरकती ब्राजीलियन युवतियाँ ,कांजी बनाने की विधि बताने वाली युवतियाँ आदि थे .मुझे सब से अच्छा 'save dolphin ' का मॉडल लगा .ह्म्म.....बाकि सब भी बहुत अच्छे लगे .इतना सुंदर, अद्भुत, आकर्षक कार्निवल देख कर मन प्रफुल्लित हो गया . हम कुछ खरीदारी कर लौटेंगे सोच रहे थे पर सभी एक दूसरे से बिछड़ गए थे इसलिए भटक रहे थे . इतने में आखिरी बस भी चली गयी.....हम एक दूसरे का मुँह ताक रहे थे कि आशा की किरण झलक उठी ...जब एक सज्जन ने अपनी मारुति व्हान में हम १४ लोगों को जैसे तैसे मीरामार तक पहुंचा दिया हम में से कुछ वहाँ उतर गए क्यों कि गाडी सभी को खींच नहीं पा रही थी . बाक़ी को गेस्ट हाउस पर छोड़ दिए थे . आज भी दिल उस सज्जन के लिए दुआ मांगती है . जहाँ भी रहें ईश्वर उन्हें खुश रखें .गोवा के इस रहवासी ने हम सभी का मन , दिल जीत लिया था .हम मीरामार से लगभग सात किमी ..चल-चल कर गेस्ट हाउस पहुँच गए .मुझे अनूजा का इंतजार था ..मेरी प्यारी-सी सहेली अपने पति मकरंद एवं बेटे आदित्य को लेकर आख़िर माफ्सा से मुझसे मिलने चली आयी हमने साथ-साथ खाना खाया ..समय बिताए सच अच्छा लगा .उनके जाने के बाद हम रात के महफ़िल के लिए फ़िर तैयार ...:-) हम सभी ने गाना गाया, खूब नाचा ...और तभी एक पंजाबी परिवार भी साथ मिल गए फ़िर क्या बात थी ...काश ! वे पल फिर एक बार आ जाते ..........







इस तरह हम रोज तट पर घूम आते .निरधी की व्यथा-कथा को कभी महसूस करते तो कभी उसकी उन्मुक्तता का एहसास करते ...अगले दिन तय हुआ सारा दिन घूमेंगे. पहले पहुंचे कोलोंगुड से ढाई किलोमीटर की दूरी पर स्थित कान्डोलिम बीच ...बहुत ही सुंदर ,नारियाल पेड़ों की पंक्ती से सजे यह तट स्पीड बोट ,जेट स्कीस,मोटर बोट ,स्कूबा ड्राइविंग ,पारासैलिंग की सुविधाएं उपलब्ध करा रही थी पर समय की कमी की वजह से हम जल्द ही निकल पड़े थे . अक्वाडा दुर्ग को बाहर से देखते हुए ,सिंकुएरिम,से होते हुए पहुंचे अंजुना बीच पर ... सुना था हर बुधवार को यहाँ पर लगे विदेशी माल से भरा मार्केट का रंग ही कुछ और है खैर हम जब पहुंचे तो दंग हो गए ...पुरा बीच चांदी के गहने, बाटिक,पेपर मशीन बॉक्स से लेकर तीबत्तीय प्रार्थना चक्की तक ,राजस्थानी कांच का काम केरल के काठ शिल्प, चित्रित चद्दरें , आधुनिक टी शर्ट , चूडियाँ , छोटे-छोटे ,गोल-गोल पत्थरों से बने गहनें से भर -पूर .वहाँ पर हमने कुछ तस्वीरें लीं और जल्द ही बस में बैठने के लिए चले आए ताकि और तट घूमा जा सके . उसके बाद पहुँचे बागा बीच पर . वहाँ लहरों में स्नान का आनंद लेते हुए विदेशियों के साथ भारतीय भी कम नहीं थे .सजे हुए होटलों में समुद्री -भोजोनों की व्यवस्था थी तथा उनके भक्षण का विज्ञापनीय आव्हान भी था . बाहर की ओर पान गोष्ठियां भी चालू थीं. पूरा तट फेरीवाले , नाई, कान साफ करने वाले , साधारण गहने बेचने वाले,अंग मर्दकों से ,रेत पर लेटे -लेटे धूप - स्नान का मजा लेते हुए विदेशियों से और कई तटीय कुटीरों से भरा था .बीच पर टीटूस बार था जो कि एकमात्र डांस फ्लोर के लिए प्रसिद्ध है ............ कुएरिम से मोंबोर तक फैले २३ सागर तटों की अलग -अलग विशेषताएं ..उत्तरीय गोवा में पर्यटकों के ध्यानाकर्षण हेतू बहुत ही सुख-सुविधाएँ उपलब्ध कराई गयी है . सफ़ेद बालुका के कणों को देख मन सिहर रहा था ... ....इस कोने से लेकर उस कोने तक हम पैदल धूप में चले जा रहे थे ..दुनिया बेखबर ...उफ़ ..समय हो गया था ...तेज गति से हम वापस साथियों के पास पहुंचे थे ...कुछ खाने के बाद सागर की सुन्दरता में और निखार आ गयी थी .. वहीं तट पर हम मन्दिर में गए थे ...नाम लिया .. तभी रोबिन को देखा हाथ में कैमरा लिए निराश खड़ा है ..हमने पूछा क्या भाई क्या बात है ?कहने लगा बीच पर फोटो खींचने नही दे रहे है....हमे बहुत हँसी आई हमने कहा अंकित को देख मोबाइल से रेकॉर्डिंग कर रहा है . और वह बन्दा अपने धुन में मस्त....विदेशी युवक के साथ अपनी तस्वीर लिए जा रहा था ...और आते ही कहने लगा देखिये मैंने किसकी तस्वीर ली ....हम सभी एक दूसरे का इंतजार कर रहे थे ..आख़िर बस चल पड़ी ..




हम जोर-जोर से गाना गा रहे थे ...दिनेश सर के शेर तो नसीम सर की शायरी ,कौर मैडम के गीत तो रोबिन के संगीत ...सुनीता महापात्र ने मैंने पायल है खनकाई गाया तो शैला ने लगजा गले .... प्रेमी , कल्याणी जी , एम् कृष्ण मूर्ति जी ,पशुपति जी ,विपिन चन्द्र जी सभी गाना सुन रहे थे .नही आए थे तो बस पी.के .मुखर्जी अंकल ...हम सभी ने उन्हें याद भी किया सभी ने बहुत आनंद उठाया .देखते ही देखते हम गेस्ट हाउस पहुँच गए थे ...दिन भर की थकान के बाद भी हम रात को फ़िर महफ़िल में भाग लेना चाहते थे क्यों कि अगले दिन सत्र खत्म होने वाला था .भारी-सा मन लिए पहुंचे .सभी हमारा इन्तजार कर ही रहे थे .जाकर देखा तो ये क्या ! सभी गजलें सुनाये जा रहे थे मैंने भी दो-तीन सुना दिए ...उस दिन कल्याणी जी ने क्या खूब गाया ...वह मन प्रसन्न हो गया ..जाते-जाते कुछ और लोगों के पाँव रुक गए थे ...ख़यालात की नजाकत व अल्फ़ाज की बंदिश क्या होती है दिनेश सर जी ने बता दिया था ..स्तुत्य ...साधुवाद धन्य भाग हमारे कि हमें ऐसे व्यक्तियों के बीच उठ-बैठने का मौका मिला .




अन्तिम सत्र में हम सभी सुबह -सुबह कांफेरेंस हाल में पहुँच गए थे .विदाई समारोह ही कहिये .मन भारी था .इतने कम दिनों में हम सभी एक -दूसरे से यूं जुड़ गए थे कि उस दिन कोई भी किसी को 'बाय' कहना नही चाहते थे .विद्वानों ने हम सभी को आगे बढ़ने के लिए आशीर्वाद दिया एवं शुभकामनाएं दी . आत्मीयता की प्रवाह लिए मंच पर जाकर अपनी मनःस्थिति को व्यक्त कर पाना असंभव लग रहा था पर फ़िर भी असामान्य से सामान्य स्थिति में आकर अभिव्यक्ति को शब्दों का जामा पहनाना भी सीख चुकी थी .मैंने सभी के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा था जब भी मैं सभी के रचित कविताओं को याद करती हूँ तो एक कविता बन जाती है ...

हिन्दी नव लेखन शिविर ने क्या जादू कर डाला
सब की कविताओं के शीर्षक को लेकर और मैंने क्या कर डाला ...!*
एक अर्ज़* है जीवन* में
मेरी तलाश*ती आँखें* प्रतीक्षारत* है
तुम्हारा स्वागत करने के लिए
पर अरविंद के आश्रम में* तुम इतनी खोई हुई हो कि
वर्षा* के सुहावने मौसम में भी
तुम्हारे पास मेरे लिए वक्त नहीं है*
तुम्हारी बेरुखी मेरी अस्मिता* की जड़ें* हिला देती है
वर दे प्रिय पत्नी* ,तुम्हारे लिए मेरी भूख*
किसी देश भक्ति* से कम नहीं है ........
(* चिह्न वाले सभी शब्द कविताओं के शीर्षक हैं )
भावनात्मक व्यक्तिकरण का सिलसिला ख़त्म होने पर हम सभी सामान पैक करने निकल पड़े .



सत्य नारायण जी (पंडित जी ) से पैसे ले लिए ,दोपहर का भोजन ग्रहण करने के बाद हम जाने की तैयारी करने लगे . डॉ. रोहिताश्व जी ने हमें कई बार उनके घर पर जाने के लिए आग्रह किया था पर सभी साथियों को छोड़ कर हम जा भी न सके थे .हमने कह दिया था कि आखिरी दिन हम चलेंगे और हम गए भी . ,प्रेमी और मैं भारी मन से कौर मैडम,नसीम सर,अंकित,मेगी,सत्य नारायण जी,हरी राम जी,और वहाँ के किचन स्टाफ से विदाई लिए और डॉ. रोहिताश्व जी के यहाँ चल पड़े.हमारे साथ प्रगतिशील आकल्प के संपादक डॉ. शोभनाथ यादव थे . हिंद-युग्म पर प्रकाशित मेरी कुछ कविताओं को पढ़कर बहुत खुश भी हुए एवं उन्हें प्रकाशित करने की इच्छा भी व्यक्त किया .उनका आशीर्वाद मुझ पर हमेशा बना रहे .हम डॉ. रोहिताश्व जी के यहाँ पहुँच गए थे ..सर थोडी देर से आए थे ..अच्छा हुआ इस बहाने उनका घर, उनकी रुची की जानकारी तो हुई . खिड़की से समंदर का नजारा ,शांत वातावरण , कौन खो न जाए ,किसकी लेखनी थम जाए ....उस व्यक्तित्व के पीछे प्रकृति का हाथ भी है ये मैं आज भी मानती हूँ ...लग-भग १००० से २००० किताबों की छोटी-मोटी लायब्रेरी ही कहिये मन तृप्त हो रहा था .हल्का नाश्ता करने के बाद हम बस स्टैंड की ओर चल दिए .बस स्टैंड पर पहुँचने के बाद अचानक याद आया कि मोबाइल तो मैं भूल आयी ... सर को फ़िर तकलीफ उठानी पड़ी ....फ़िर हम वापस उनके घर गए एवं वापस पहुँच गए ..सर से विदा लेकर हम ने पास ही किसी होटल में भोजन ग्रहण किया और बस में बैठ गए .





माफ्सा आने का इन्तजार कर रही थी ..वहाँ अनुजा,मकरंद और आदित्य आए हमारे लिए खाना पैक करके लाये थे ...उनसे भी विदा लेकर हम औरंगाबाद की ओर रवाना हुए ...सुख भी यात्रातीत थे और दुःख भी यात्रातीत ..मेरे पास कुछ बचे हैं तो वे हैं अतीत .........सच ये यात्रा तो मेरे लिए किसी कविता की भाँती थी ,मैं खुश थी .....सामान को ऊपर शेल्फ में रख कर आँख मूंद ली फ़िर देखा रास्ता शांत था ,मैं जगी हुई थी ..सोच रही थी अब ये नजारे हमसे दूर हो जायेंगे ..जंगल छूट जायेंगे ...गुफा में घुस जायेंगे ... आँख लग गयी थी ,चादर के भीतर मैं सपने बुन रही थी ,खुली तो जीवन प्रवाह के किनारे-किनारे पहुँच गयी थी जहाँ से यात्रा शुरू की थी ............. घर पहुँचकर गुडिया की शिकायत भरी नजरों को देखा तो उस पर बहुत प्यार आया क्यों कि परीक्षा की वजह से वह हमारे साथ न आ सकी थी . ....अगली बार उसे जरूर गोवा ले चलूंगी .......


सुनीता यादव

8 comments:

गौरव सोलंकी said...

अच्छा यात्रा वृत्तांत लिखा है। तस्वीरों के साथ और भी सजीव हो गया है।
हाँ, जल्दबाजी में शायद कुछ अशुद्धियाँ रह गई हैं। उन्हें ठीक कीजिएगा। बाकी सब बढ़िया है। गोवा घूमने की प्रेरणा देता है।

कथाकार said...

आपके बहाने एक बार पिफर गोवा घूम लिया. सचित्र. अच्‍छा लगा. आलेख में रवानगी है और आस पास के माहौल में रच बस जाने की आपकी अदम्‍य इच्‍छा हर पंक्ति में झांक रही है.
एक बात कहना चाहूंगा. क्‍या नहीं लिखना है. हर लेखक को ये भी देर सबेर सीखना चाहिये. यात्रा संस्‍मरण और स्‍थल संस्‍मरण में बहुत कुछ ऐसा होता है जिसके ब्‍यौरों से बचा जा सकता है. पाठक की रूचि बनाये रखने के लिए.
आपकी अगली यात्रा का इंतजार रहेगा

Prem said...

You have a beautiful heart
that overflows with love and life.
You are such a great inspiration,
and I just had to tell you.

You seem to have
a joy in your heart at all times.
Your happiness rubs off on others,
and it affects me.
Prem..........

Prem said...

Do not undermine your worth by
Comparing yourself with others.
It is because we are different
That each of us is special.

Do not set your goals by what
Other people deem important.
Only you know what is best for you.

Do not take for granted the things
Closest to your heart.
Cling to them as you would your life,
for without them, life is meaningless.

Do not let your life slip through your fingers
By living in the past nor for the future.
By living your life one day at a time,
You live all the days of your life.

Do not give up when you
Still have something to give.
Nothing is really over until the
Moment you stop trying.
It is a fragile thread that
Binds us to each other.

Do not be afraid to encounter risks.
It is by taking chances
That we learn how to be brave.

Do not shut love out of your life by
Saying it is impossible to find.
The quickest way to receive
Love is to give love;
The fastest way to lose love
Is to hold it too tightly;

In addition, the best way to keep
Love is to give it wings.
Do not dismiss your dreams.
To be without dreams
Is to be without hope;
To be without hope
Is to be without purpose.

Do not run through life
So fast that you forget
Not only where you have been,
But also where you are going.
Life is not a race,
But a journey to be savored
Each step of the way.

Good Job.........keep it UP.

Prem...........

Arun B Rasal said...

likane ki aadat achi hai,likhte raho

Unknown said...

nice song...

Simple guy said...

'PYAS'/'THIRST' is nothing but a 'DRIVE' which results in getting something for satisfaction.
Recently I found few of your blogs/ kavitas on the net n gave comments.I've not seen U for nearly two decades, but happy to know that the River is still flowing with full force washing away all that come across....
adultmoney04@gmail.com

Unknown said...

nice to see you on internet. nice work of your's. congratulations mam really your work is impressive and you have done lot for hindi language.

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